नई दिल्ली: विदेशी हस्तक्षेप के कारण बांग्लादेश (Bangladesh) में स्थिति और खराब हो गई है, फिर भी भारतीय राजनेता इससे सबक लेने को तैयार नहीं हैं। भारतीय सुप्रीम कोर्ट ( Indian Supreme Court) ने हिंडनबर्ग (Hindenburg) रिपोर्ट को खारिज कर दिया है, इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है और इसके दावों को खारिज कर दिया है। हालांकि, इसके बावजूद भारत में विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने सरकार पर हमला करने के लिए एक विदेशी फर्म को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। रविवार को लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च (Hindenburg Research) द्वारा सेबी की चेयरपर्सन माधबी बुच के खिलाफ लगाए गए नए आरोपों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि प्रतिभूति नियामक की ईमानदारी के साथ “गंभीर समझौता” किया गया है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की प्रतिक्रिया हिंडनबर्ग (Hindenburg) के दावों को इतना महत्व देने के पीछे के उद्देश्यों पर सवाल उठाती है, जिसके बारे में कुछ लोगों का मानना है कि यह बाहरी ताकतों द्वारा रची गई एक व्यापक रणनीति का हिस्सा हो सकता है। जबकि भारतीय सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पहले ही अडानी (Adani) पर हिंडनबर्ग (Hindenburg) की रिपोर्ट को अविश्वसनीय माना है, यह ध्यान देने योग्य है कि इसी रिपोर्ट ने भारत में राजनीतिक हलचल पैदा कर दी थी। हालांकि हिंडनबर्ग (Hindenburg) ऐसी रिपोर्ट जारी करने के लिए एक विश्वसनीय अंतरराष्ट्रीय संस्था नहीं है, लेकिन भारत में विपक्ष और मीडिया ने इसे सत्य मान लिया, जिससे बाजार में काफी उतार-चढ़ाव आया। शॉर्ट-सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग (Hindenburg) ने इसका फायदा उठाया और हजारों भारतीय निवेशकों को नुकसान हुआ।
भले ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय में मामले ने हिंडनबर्ग (Hindenburg) के आरोपों को अंततः बदनाम कर दिया, लेकिन नुकसान पहले ही हो चुका था। अब, हिंडनबर्ग (Hindenburg) ने एक और रिपोर्ट जारी की है, इस बार सेबी प्रमुख माधबी बुच को निशाना बनाते हुए, और विपक्ष ने इसे तुरंत लपक लिया है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने इस रिपोर्ट को आधार बनाकर सरकार की आलोचना की है, उनका तर्क है कि हिंडनबर्ग के हालिया निष्कर्षों से पता चलता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) कथित तौर पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच से क्यों डरते हैं। शनिवार रात को जारी हिंडनबर्ग रिसर्च (Hindenburg Research) की नवीनतम रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अदानी समूह के खिलाफ कार्रवाई करने में सेबी की अनिच्छा अदानी समूह से जुड़े ऑफशोर फंड में इसकी प्रमुख माधबी बुच की हिस्सेदारी के कारण हो सकती है। हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) सहित कई व्यक्तियों के पास विभिन्न कंपनियों में शेयर हैं। शेयर बाजार में कारोबार करने वाले किसी भी व्यक्ति के पास किसी न किसी कंपनी के शेयर होंगे। सेबी प्रमुख माधबी बुच के पास भी अडानी समूह (Adani Group) के शेयर हैं, लेकिन इसमें क्या गलत है? हिंडनबर्ग (Hindenburg) का आरोप है कि सेबी ने अडानी (Adani) के खिलाफ इसलिए कार्रवाई नहीं की क्योंकि बुच ने अडानी समूह (Adani Group) के शेयरों में निवेश किया था। इस तर्क के अनुसार, बजाज-टाटा, आईसीआईसीआई और अन्य कंपनियों में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के निवेश की भी जांच होनी चाहिए। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने मोदी सरकार (modi government) के सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (एसजीबी) में 15.27 लाख रुपये का निवेश भी किया है, फिर भी वे मोदी सरकार (modi government) की आलोचना करते हैं।
इन विरोधाभासों के बावजूद, एक विदेशी फर्म की निराधार रिपोर्ट को लेकर भारतीय राजनीति एक बार फिर गरमा गई है, क्योंकि विपक्ष इसे सरकार को घेरने का एक हथियार मानता है। महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे फिलहाल पीछे छूट गए हैं और चुनावों के करीब आने पर फिर से उभरने की संभावना है। इस बीच, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के नेतृत्व में विपक्ष इस रिपोर्ट को केंद्रीय मुद्दा बनाने की तैयारी में है। राहुल गांधी ने एक वीडियो भी जारी किया जिसमें कहा गया कि “छोटे खुदरा निवेशकों की संपत्तियों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार प्रतिभूति नियामक सेबी की ईमानदारी को इसके अध्यक्ष के खिलाफ आरोपों से गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा है।” राहुल ने यह भी सवाल उठाया कि आरोपों की गंभीरता को देखते हुए सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच ने अभी तक इस्तीफा क्यों नहीं दिया है।
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने आगे कहा, “देश भर के ईमानदार निवेशकों के पास सरकार से महत्वपूर्ण सवाल हैं: सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच ने अभी तक इस्तीफा क्यों नहीं दिया है? अगर निवेशक अपनी मेहनत की कमाई खो देते हैं, तो कौन जवाबदेह होगा – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi), सेबी अध्यक्ष या गौतम अडानी? नए और बहुत गंभीर आरोपों को देखते हुए, क्या सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) इस मामले का एक बार फिर से स्वतः संज्ञान लेगा?” राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने आगे जोर देते हुए कहा, “अब यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) जेपीसी जांच से इतना डरते क्यों हैं और इससे क्या उजागर हो सकता है।” इस बीच, सत्तारूढ़ भाजपा ने कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों पर भारत में वित्तीय अस्थिरता और अराजकता पैदा करने की साजिश रचने का आरोप लगाया है।
भाजपा ने सेबी अध्यक्ष के खिलाफ हिंडनबर्ग (Hindenburg) के आरोपों को वित्तीय नियामक की विश्वसनीयता को कम करने का प्रयास बताते हुए खारिज कर दिया है। भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, “शॉर्ट-सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग (Hindenburg) , जिसने पिछले साल अडानी समूह (Adani Group) के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए थे, अब भारतीय जांच एजेंसियों की जांच का सामना कर रही है।” त्रिवेदी ने कहा, “विपक्षी दल भी यही आरोप लगा रहे हैं और अराजकता और अस्थिरता पैदा करने की उनकी साजिश स्पष्ट हो रही है। उनका उद्देश्य भारत के आर्थिक क्षेत्र को कमजोर करना है।” यह उल्लेखनीय है कि अडानी (Adani) के खिलाफ हिंडनबर्ग (Hindenburg) द्वारा लगाए गए एक भी आरोप सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में साबित नहीं हुए। विपक्ष अब जेपीसी जांच की मांग कर रहा है, जहां सांसदों का एक पैनल यह जांच करेगा कि क्या हिंडनबर्ग (Hindenburg) के आरोप सच हैं। हालांकि, सवाल यह उठता है कि क्या इन आरोपों पर पहले से ही विश्वास करने वाले सदस्य निष्पक्ष जांच कर सकते हैं या क्या वे इस मामले को संभालने में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से अधिक सक्षम हैं। ये कुछ प्रमुख चिंताएँ हैं।