हाल ही में भारतीय इतिहास को “पुनर्लेखित” करने के दावे और आरोपों ने दुनिया भर में चर्चा का विषय बना दिया है। यह प्रश्न उठता है कि क्या भारत में इतिहास लेखन पर किसी खास “राइटिस्ट” या “हिंदुत्व” विचारधारा का प्रभाव पड़ रहा है? इस पर विचार करने से पहले यह स्पष्ट करना जरूरी है कि वर्तमान में कोई बड़े बदलाव नहीं हो रहे हैं।
भारतीय इतिहास को क्यों पुनर्लेखित करने की जरूरत है?
इतिहास को पुनर्लेखित करने की आवश्यकता केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में महसूस की जाती है। ऐतिहासिक तथ्यों को विजेताओं के दृष्टिकोण से लिखा जाता है, जिससे अन्य संस्कृतियों और धार्मिक मान्यताओं को उपेक्षित या विकृत किया जा सकता है। भारतीय इतिहास के संदर्भ में, पूर्ववर्ती इतिहासकारों ने हिंदू धर्म की प्रमुखता को दबाने का प्रयास किया है, जबकि अन्य धर्मों को आदर्श बना दिया है।
भारतीय इतिहास को कैसे पुनर्लेखित किया जाना चाहिए?
भारतीय इतिहास को एक निष्पक्ष दृष्टिकोण से पुनर्लेखित करना चाहिए, जिसमें सभी प्रमुख घटनाओं और व्यक्तित्वों को सही तरीके से प्रस्तुत किया जाए।
- क्लासिकल भारतीय सभ्यता की ऐतिहासिक मान्यता: यह महत्वपूर्ण है कि भारतीय सभ्यता के विभिन्न कालखंडों को पूरी तरह से समझा जाए। इसमें सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर मौर्य और गुप्त काल तक, और दक्षिण भारत के पांड्या, चोल, और चेरा राजवंशों का उल्लेख होना चाहिए।
- प्रारंभिक काल की विश्लेषण: “आर्यन आक्रमण” जैसे सिद्धांतों के स्थान पर, इतिहासकारों को प्राचीन ग्रंथों और पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सत्यापन करना चाहिए।
इतिहास का पुनर्लेखन आवश्यक है, लेकिन यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि यह “असत्य से सत्य की ओर” हो, न कि एक नए असत्य की ओर। सही और निष्पक्ष दृष्टिकोण से पुनर्लेखन से ही हम वास्तविक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।